हे कृष्ण!
अपने मित्र की खबर पे |
नंगे पैर तुम दौड़ पड़े ||
न अभिमान न अहंकार तुम्हें |
हे कृष्ण! तुम कैसे महिपाल हुए ||
चावल के एक एक दाने पे |
तीनों लोक तुमने वार दिए ||
न लालच न मोह तुम्हें |
हे कृष्ण! तुम कैसे अवनीश हुए ||
मुख से जब भी तुम्हारे स्वर निकले |
बस राधे राधे अल्फाज बोले ||
चाहकर जब इतना तुम पा न सके |
हे कृष्ण! तुम कैसे प्रेमी हुए ||
सुनकर आवाहन जरासंध का |
रण से भी तुम भागे हो ||
अपनी इस लीला से तुम रणछोड़ हुए |
हे कृष्ण! तुम कैसे योद्धा हुए ||
के वो सामने सूर्यपुत्र कर्ण थे |
जिनके जीवन से ज्यादा उनके श्राप हुए ||
उस योधा पे निशस्त्र वार हुए |
हे कृष्ण! तुम कैसे तारणहार हुए ||
रण भूमि में सारथी थे |
पर न जाने कितने तुम्हारे चल थे ||
होकर सर्वयापी भी युद्ध न तुम रोक सके |
हे कृष्ण! तुम कैसे भगवान हुए ||
🙏Jai Shri Krishna🙏
🔱Om Namah Shivay🔱
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